Apr 19, 2011

नाद

साधारण रूप से कान को प्रिय लगने वाली ध्वनि को नाद कहते है | संगीत शास्त्र के अनुसार नाद वह ध्वनि है जिसकी आन्दोलन संख्या  (प्रति सेकंड उठने वाली ध्वनि तरंगें) नियमित हो और जो ध्वनि निश्चित स्थान पर टिकी हो |
हर ध्वनि तरंग को संगीत उपयोगी नहीं कहा जा सकता | पटाखे का फटना, कुत्ते का भौंकना आदि ध्वनियाँ तो है पर नाद नहीं | भौरें का गुंजार या कारखानों में बजने वाला भोपू  बंधी हुई एक सी ध्वनि पैदा करें तो उन्हें नाद कह भी सकते है | किन्तु वह भी संगीत के लिए उपयोगी नहीं | इसलिए तरह-तरह की मिली-जुली ध्वनियाँ कोलाहल की श्रेणी में आती है नाद की श्रेणी में नहीं |
नाद दो प्रकार के होते है :- (१) आहत नाद (२) अनाहत नाद |
१- आहत नाद :- ये किन्ही बाहरी क्रियाओं से उत्त्पन्न होता है | नाद पैदा होने का मुख्य आधार वायु में विशेष प्रकार का कम्पन पैदा होना है | यह कम्पन तीन प्रकार से पैदा होते है १- आघात २- घर्षण ३- वायु |
आगह्त द्वारा ढोल, ढोलक, तबला, सितार,गिटार, तानपुरा आदि वाद्यों से नाद पैदा किया जाता है | सारंगी, वायलिन आदि में गज को तारों पर रगड़ने से नाद की उत्पत्ति होती है | मनुष्य के कंठ, बांसुरी, हारमोनियम की रीड, शहनाई आदि में वायु के प्रवाह के कारण नाद पैदा हो जाता है |
२- अनाहत नाद :- अनाहत नाद का संबंध व्यवाहरिक संगीत से नहीं है | यह योग विषय है | प्रकृति में कुछ ध्वनियाँ स्वतः उठती रहती है जो सामान रूप से सुनाई नहीं देती उन्हें ही अनाहत कहते है |
 नाद की विशेषताएं  :-
आहत नाद अपनी इच्छा के अनुसार उत्पन्न किया जा सकता है | इच्छित नाद पैदा करने अथवा दो प्रकार के नादों का अंतर पहचानने के लिए नाद की विशेषताएं जानना आवश्यक है | नाद की तीन प्रमुख्न विशेषताएं है | १-नाद  का छोटापन या बड़ापन, २- नाद की जाति अथवा गुण, ३- नाद का ऊँचा या नीचपन |
 

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